इस शहर की यात्रा का अनुभव आपको भीतर तक बदल कर रख देगा।
पृथ्वी और स्वर्ग के बीच वाराणसी को सबसे बड़े तीर्थ के रूप में जाना जाता है। हिंदुओं के लिए तो जीवन में एक बार यहां आकर गंगा स्नान करना बेहद जरूरी माना गया है।
पवित्र शहर काशी, पवित्र नदी गंगा और देवों में देव महादेव यानी भगवान शिव के संगम के कारण मोक्षदायिनी शहर के नाम से भी जाना जाता है।
यह हिंदुओं, बौद्ध और जैन समाज के धार्मिक, आध्यात्मिक विचारों और मान्यताओं का गढ़ रहा है। इसीलिए इसे प्राचीन शिक्षा, धर्म, दर्शन, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष शास्त्र, गीत-संगीत, कला-साहित्य और आध्यात्मिकता का सांस्कृतिक केंद्र भी कहा जाता है।
घाट किनारे का रोजमर्रा का जीवन और शाम के समय होने वाली गंगा आरती इस पवित्र नदी के प्रति लोगों का नजरिया बदल देती है।
बनारसी सिल्क साड़ियां और कालीन ने इसे वैश्विक बाजार में भी पहचान दिलाई हुई है।
घाट और मंदिरों में सुबह का समय बिताना आध्यात्मिक स्तर पर मन और चित्त को शुद्ध करने वाला अनुभव है।
सारनाथ
सिर्फ 10 किमी दूर है सारनाथ, जो बौद्ध धर्मावलंबियों का एक बड़ा तीर्थ है। ऐसा माना जाता है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश यहीं सारनाथ में दिया था। इसे महाधर्म चक्र परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।
धमेक स्तूप और अन्य का निर्माण यह संकेत है कि उस समय इसकी क्या अहमियत रही होगी।
चौखंडी स्तूप वह जगह है जहां पहली बार सारनाथ आए भगवान बुद्ध की अपने पहले पांच शिष्यों से मुलाकात हुई थी।
यह जगह धर्मराजिका स्तूप और मूलगंध कुटी विहार जैसी पुरातात्विक महत्व की संरचनाओं के लिहाज से भी खासी अहमियत रखती है।
सम्राट अशोक ने 273-232 ईसापूर्व यहां बौद्ध संघ के प्रतीक स्वरूप विशालकाय स्तंभ स्थापित किया था। इसके ऊपर स्थापित सिंह आज भारत देश का राष्ट्रीय प्रतीक है।
विंध्यांचल
Vindhyanchal Mandir
विंध्य पर्वत श्रंखला के बीच मिर्जापुर के पास गंगा के किनारे स्थित यह स्थान एक और तीर्थ है।
देवी विंध्यवासिनी की शक्तिपीठ लाखों लोगों को अपनी देवीय शक्ति के कारण हर साल आकर्षित करती है।
इसके आसपास अष्टभुजा माँ का मंदिर और कालीखोह मंदिर जैसे कई प्रमुख तीर्थस्थल हैं, जहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है।
अप्रैल और अक्टूबर की नवरात्रि में तो यहां भव्य समारोह का आयोजन देखने वाला होता है।
सोनभद्र
यह एक प्राचीन स्थल है, जहां के शिव द्वार और रेणुकेश्वर मंदिर के आसपास महाभारत काल के प्रतीक और मूर्तियां देखने को मिलती हैं।
विजयगढ़ महल इस इलाके के शक्तिशाली शासकों की गाथा बयां करता है।
यहां पुरातात्विक, धार्मिक और प्रकृति से जुड़ी नायाब चीजें देखने को मिलेंगी। गुफाओं की दीवारों पर उकेरे गए चित्र एक बड़ा आकर्षण है।
प्रकृति से प्रेम करने वालों के लिए लखनिया और मुक्खा प्रपात आकर्षक स्थल है। यह जगह विख्यात फॉसिल पार्क से लगी हुई है।
यहां से कुछ ही दूर पड़ती है कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी। यहां जंगली जानवरों और पंछियों की अच्छी-खासी प्रजातियां देखने को मिलती हैं।
चुनार
वाराणसी से 40 किमी पर स्थित यह जगह धर्म, इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम है।
गंगा के किनारे विंध्य श्रृंखला पर बसे जंगल में दिन में यादगार ट्रैकिंग की जा सकती है ।
चुनार का किला एक और दर्शनीय स्थल है, जिसके आगोश में समाये हैं लगभग 1000 साल पुराने विशाल पत्थरों से बने मंदिर।
झिरना नाला पर बना प्रसिद्ध दुर्गा खोह मंदिर प्राकृतिक रॉक शेल्टर का बेहतरीन नमूना है। इसकी दीवारों पर दुर्लभ आकृतियां और चित्र उकेरे हुए हैं।