कपिलवस्तु

कपिलवस्तु प्राचीन शाक्य राजघराने की राजधानी हुआ करती थी। इसी राज परिवार के शासक शुद्धोधन सिद्धार्थ के पिता थें। सिद्धार्थ ही आगे चल कर महात्मा बुद्ध कहलाये और उन्हें शाक्यमुनि के नाम से भी जाना जाता है। शाक्य क्षेत्र छठी शताब्दी (ईसा पूर्व) में सोलह महाजनपदों में से एक था। इस राज परिवार के राजकुमार गौतम ने 29 वर्ष की आयु में कपिलवस्तु से प्रस्थान किया और आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद यहाँ उनका दोबारा आगमन 12 वर्षों के बाद हुआ। आज कपिलवस्तु क्षेत्र में कई गाँव शामिल हैं, जिनमे पिपरहवा, गांवरिया और सालारगढ़ मुख्य हैं।

मुख्य स्तूप

यह इस क्षेत्र का मुख्य पुरातत्त्व आकर्षण है और जो वर्ष 1971-76 की खुदाई के दौरान ढूँढा गया था। यहाँ 31 टेराकोटा की मोहरे पाई गईं थीं, जिससे प्राचीन कपिलवस्तु के यहां होने के संकेत मिलते हैं, जो शाक्य की राजधानी हुआ करती थी। इन मोहरों पर पहली या दूसरी शताब्दी की ब्राह्मी लिपि में लेखन है। इनमे एक मोहर पर लिखा है: ‘ओम देवपुत्र विहारे कपिलवस्तु भिक्षु संघ्सा।’ यहाँ देवपुत्र का आशय कनिष्क से है, जो बौद्ध धर्म के महान प्रचारक थे और जिसने कपिलवस्तु में सबसे विशाल विहार का निर्माण करवाया था और वहां स्थित स्तूप का पुनर्निर्माण भी कराया। इससे यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्राचीन कपिलवस्तु नगर उस स्तूप और विहार के निकट ही स्थित होगा।

स्तूप की खुदाई में दो ऐसे बक्से मिले जिनमे जली हुई अस्थियों के अवशेष थे। यह बक्से अलग आकारों के हैं और अपेक्षाकृत कम कठोर पत्थर सोपस्टोन से बने हैं, जिन्हें खरादी के जरिये दक्षतापूर्वक आकार दिया गया है। यह खोज बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि पिछली शताब्दी के अंतिम वर्षों में भी इसी प्रकार के पत्थर से निर्मित एक बक्सा इसी स्तूप से पाया गया था और उस पर अशोक युग की ब्राह्मी लिपि में कुछ अंकित भी था।

गांवरिया पुरातत्व स्थल

गांवरिया में पुरातत्व अवशेषों की खोज के लिए की गई खुदाई के दौरान ईंटों से निर्मित दो विशालकाय परिसर दिखे, जिनमें पूर्व की ओर से प्रवेश है। इसमें बड़ा टीला 39 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के साथ दक्षिणी किनारे पर स्थित है। इसमें 25 कमरे हैं और चारों कोनों पर एक गैलरी या लम्बा बरामदा भी है। इनमे उत्तर-पश्चिमी गैलरी में 85 सेंटीमीटर व्यास का एक कुआं भी स्थित है। सभी कमरे और गैलरी एक विशाल 29 वर्ग मीटर के आँगन के चारों ओर निर्मित हैं।

दूसरा परिसर करीब 30 मीटर उत्तर पूर्व में स्थित है और यह लगभग 26 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें केवल 20 कमरे हैं और इसमें कुछ अतिरिक्त निर्माण भी किये गए हैं।

इस स्थल पर पाए गए बर्तनों के अवशेषों और अन्य सामानों के आधार पर प्रतीत होता है कि, यहाँ सबसे पहले व्यवसाय का समय 8वीं शताब्दी (ई पू) का रहा होगा और यहाँ तीसरी शताब्दी (ईस्वी) तक लोग व्यवसाय करते रहे होंगे। यह स्थान पिपरहवा के प्राचीन स्तूप के निकट है, जहां कपिलवस्तु के उल्लेख वाली मोहरें पाई गईं थीं। यहाँ खोजे गए विशाल भवन और प्राचीन अवशेष के आधार पर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यह कपिलवस्तु नगर की राजधानी थी, जहां शाक्य शासक शुद्धोधन और उसके पुरखे निवास करते थे।

सालारगढ़ पुरातत्त्व स्थल

सालारगढ़ पिपरहवा से लगभग 200 मीटर पूर्व में स्थित है और यहाँ खुदाई में कुषाण काल के एक मठ के अवशेष मिले थे। इस मठ की वास्तुकला पिपरहवा से भिन्न है। इसमें उत्तर दिशा की ओर से कुछ सीढियाँ चढ़ कर प्रवेश किया जा सकता है। इस मठ के उत्तर में एक छोटा स्तूप भी मिला था।