त्रेता युग में मिथिला नरेश सीरध्वज जनक के दरबार में रामजी द्वारा धनुर्भंग के बाद अयोध्याजी से बारात आई। श्री राम सहित चारों भाईयों का विवाह हुआ। जिस स्थान पर जनकपुर में मणियों से सुसज्जित वेदी और यज्ञ मंडप निर्मित हुआ वह समकाल में रानी बाजार के निकट है । यह स्थल मणि मण्डप के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन आसपास कहीं कोई मणि निर्मित परिसर नहीं है। बस नाम ही शेष है । पास ही में वह पोखरा है जहां चारों भाईयों के चरण पखारे गए थे, तथा विवाह की यज्ञ वेेदी बनी हैं।
ग्रंथ उल्लेख
वा.रा. 1/70, 71, 72, 73 पूरे अध्याय, मानस 1/212/4,1/286/3 से 1/ 288/2, 3, 4, 1/313/3, 1/319 छंद 1/321/छन्द, 1/322/4 से 1/324/छ-4।