राप्ती नदी के तट पर यह स्थान सहेठ-महेठ के अवशेषों से चिन्हित है। यह प्राचीन कोसला साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थान माना जाता है, क्योंकि यहाँ भगवान बुद्ध ने नास्तिकों को सही दिशा दिखाने के लिए कई चमत्कार किये थे। इन चमत्कारों में बुद्ध ने अपने कई रूपों के दर्शन कराये थे। यह स्थान बौद्ध सर्किट के अंतर्गत निर्मित सड़कों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
- बहराइच से 15 किमी दूर बौद्ध स्तूप और उससे जुड़े खंडहर फैले हुए हैं। पौराणिक आख्यानों के मुताबिक इनका निर्माण राजा श्रावस्त ने कराया था। कहा जाता है कि इस स्थान पर 27 सालों तक भगवान बुद्ध रहे थे और उन्हें यहां का बरसात का मौसम बहुत पसंद था।
- यह प्राचीन कोसला साम्राज्य की राजधानी रहा है। यहीं पर भगवान बुद्ध ने नास्तिकों को अपनी ईश्वरीय शक्तियों से परिचित कराया था।
- राप्ती नदी के किनारे खंडहर रूप में बचे सहेठ-महेठ गांव भी इसकी एक पहचान हैं।
- इन खंडहरों को बहुत अच्छे ढंग से सहेज कर रखा गया है। इन्हीं खंडहरों के बीच स्थित है बौद्ध वृक्ष, जिसके कारण यहां अध्यात्म का सुरम्य माहौल बना रहता है।
- जापान के सहयोग से स्थापित वर्ल्ड पीस बेल पूरे विश्व को मानवता का संदेश देती है।