लोक मान्यता के अनुसार श्रीराम तुलजापुर से बोरी नदी के किनारे-किनारे आये थे। यह नदी बाद में भीमा नदी में मिलती है। किनीगाँव के निकट उन्होंने नदी में स्नान किया था। अब यहाँ एक छोटा सा श्रीराम मंदिर बना है।
नलदुर्ग से 3 कि.मी. दूर बोरी नदी के किनारे एक पहाड़ी पर श्रीराम लक्ष्मण जी तथा सीता जी के खेत बताए जाते हैं। इन्हें डोह कहते हैं। श्रीराम के सानिध्य का इस स्थल को दो बार सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
तुलजापुर में माँ सती ने श्रीराम को एक शिला पर अपने वास्तविक स्वरूप के दर्शन दिये तथा दक्षिण दिशा में सीतान्वेषण का संकेत किया। जिस शिला पर उन्होंने श्रीराम को दर्शन दिये वह आज घाटशिला मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।
तुलजापुर में सती माँ ने श्रीराम की परीक्षा लेने के बाद श्रीराम को सीतान्वेषण में सफल होने का वरदान दिया तभी नाम श्रीराम वरदायिनी हुआ है।
रामलिंग येडसी श्रीराम किसी भी स्थिति में भगवान शिव की पूजा अवश्य करते थे। उस्मानाबाद जिले में येडसी के निकट घने जंगल में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी। इसीलिए इस मंदिर का नाम रामलिंग है।