काठमाण्डु / Kathmandu

काठमांडू (नेपालभाषा :येँ देय्, प्राचीन नेपालभाषा:ञे देय्, संस्कृत:कान्तिपुर नगर, नेपाली:काठमाडौँ), नेपाल की राजधानी है। यह नगर, समुद्रतल से 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं, और 50.8 वर्ग किमी में फैला हुआ हैं। काठमांडू नेपाल का सबसे बड़ा शहर है, जहां पर्यटक का सबसे ज्यादा आगमन होता हैं। चार ओर से पहाड़ियों से घिरा काठमांडू उपत्यका के पश्चिमी क्षेत्र में अवस्थित यह नगर, यूनेस्को की विश्‍व धरोहरों में शामिल हैं। यहाँ की रंगीन संस्कृति और परंपराओं के अलावा विशिष्ट शैली में बने शानदार घर सैलानियों को आकर्षिक करते हैं। यहाँ के विश्वप्रसिद्ध मंदिर, पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखते हैं। साथ ही यहां के प्राचीन बाजारों की रौनक भी देखते ही बनती है।

काठमांडू शब्द संस्कृत शब्द काष्ठमण्डप का अपभ्रंश है। काष्ठमण्डप इस नगर के मध्य में अवस्थित एक गोरखनाथजी का मंदिर और प्राचीन समय में यात्रुऔं का विश्रामस्थल है। यह भवन एक ही वृक्ष का काष्ठ प्रयोजन करके बनाया गया था। इस वैभवशाली भवन के नाम से इस नगर का नामाकरण किया गया। ऐसा विश्वास है कि इस नगर का मध्यकालीन नाम कांतिपुर इस नगर के कांति और वैभव के लिए रखा गया था। इस नगर का नेपालभाषा का नाम येँ है। यह नाम प्राचीन नेपालभाषा का ञें का अपभ्रंश है। यह नाम का उत्त्पत्ति किरांत काल मे हुवा था।

पशुपतिनाथ मंदिर

पशुपतिनाथ नेपाल में हिंदुओं का सबसे पवित्र तीर्थस्थान हे। इसे वाराणसी का छोटा रूप कहा जा सकता है। यहां पर मंदिरों की लंबी श्रृंखला, श्मशान घाट, धार्मिक स्‍नान और साधुओं की टोलियां देख सकते हैं। भगवान शिव को समर्पित पशुपतिनाथ मंदिर बागमती नदी के किनार बना है। जिस तरह भारत में गंगा नदी को श्रद्धास्वरूप माना जाता है, उसी प्रकार नेपाल में बागमती को पवित्र माना जाता है। इस मंदिर को भगवान शिव का एक घर माना जाता है। प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते हैं।

अशोक विनायक मंदिर

अपनी सादगी के बावजूद यह मंदिर काठमांडू में भगवान गणेश का मुख्य मंदिर है। यह कष्टमंडप के पीछे स्थित है। यहां होने वाले धार्मिक अनुष्ठान राज्याभिषेक समारोह का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं इस मंदिर के बार में माना जाता है कि इसकी स्थापना गुंडकाम देव ने 10वीं शताब्दी में की थी। लेकिन इसका वर्तमान ढांचा 19वीं शताब्दी के मध्य में बना है। गणेश जी की पाषाण प्रतिमा अशोक के वृक्ष की स्वर्ण प्रतिलिपि के नीचे स्थित है। पहले अशोक का पेड़ पूर मंदिर को घेर हुए था और इसी के नाम पर इस मंदिर का नाम रखा गया।

हनुमान ढाेका (हनुमद् द्वार)

देगूताले मंदिर और तालेतू मंदिर के बीच एक खुली जगह है जिसे हनुमान ढाेका कहा जाता है। इसका नाम हनुमान् जी के नाम पर रखा गया था जो महल मल्ल राजा अपना इष्ट देव मानते थे। 1672 में प्रताप मल्ल के शासक काल के दौरान हनुमान् जी की प्रतिमा द्वार के सामने लगाई गई थी ताकि बुरी आत्माएं और बीमारियां प्रवेश न कर सकें। सैकड़ों साल बाद भी यह प्रतिमा अपने रूप का प्रभाव कायम रखे हुए हैं।

जगन्नाथ मंदिर

जगन्नाथ मंदिर हनुमान धोका के पास स्थित है। मंदिर में प्रवेश के तीन द्वार हैं। द्वारों, खिड़कियों और छत पर की गई लकड़ी की नक्काशी इस मंदिर की शान है। कहीं-कहीं रती संबंधी चित्र भी देखे जा सकते हैं। मूल रूप से यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित था लेकिन बाद में इसे भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया गया।

दरबार मार्ग

दरबार मार्ग का निर्माण राणा वंश के शासन काल में हुए नगर विस्तार के दौरान किया गया था। यह काठमांडू पर्यटन का मुख्य केंद्र है। यहां पर महंगे होटल, रेस्टोरेंट, ट्रैवल एजेंसियां और एयरलाइंस ऑफिस मिल जाएंगे। दरबार मार्ग जंक्शन के बीच में पूर्व राजा महेंद्र की प्रतिमा लगी हुई है। इसके अलावा यहां पर बहुत से प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल हैं जहां पर नेपाल की संस्कृति के दर्शन किए जा सकते हैं।

आकाश भैरव मंदिर

दुर्भाग्यवश यह मंदिर पर्यटकों के लिए नहीं खुलता। यह मंदिर भैरव के एक रूप को समर्पित है जिन्हें कीर्ति राजा यलंबा माना जाता है। अनुश्रुतियों के अनुसार राजा यलंबा महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए भारत आए थे। जब भगवान कृष्ण की नजर उन पर पड़ी तो कृष्ण ने उनसे पूछा की वे किसकी ओर से लड़ना चाहते हैं। राजा ने कहा कि वे हारने वालों की तरह से लड़ेंगे। यह सुनकर कृष्ण ने उनकी गर्दन काट दी जो काठमांडु आकर गिरी। यहां राजा यलंबा को आकाश भैरव के रूप में पूजा जाता है। प्रतिवर्ष यहां इंद्रा जात्रा उत्सव मनाया जाता है। मंदिर के भूतल में बहुत सारी छोटी-छोटी दुकानें भी हैं जिनके सामने कुली और रिक्शे वाले मिल जाएंगे।

राष्ट्रीय संग्रहालय

स्वयंभूनाथ की पहाड़ियों के रास्ते में स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय काठमांडू के लोगों और पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है। यहां पर पुरानी कलाकृतियों के अलावा निवर्तमान राजाओं के स्मृतिचिह्नों और हाल ही में इस्तेमाल किए गए हथियारों को प्रदर्शित किया गया है। इस संग्रहालय में आने वाला दर्शक यहां आकर जाने पाते हैं कि पुराने समय में नेपाल पर राज करने के लिए कैसे युद्ध किए गए और बाद में अंग्रेजों से बचाने के लिए किस प्रकार की लड़ाईयां लड़ी गई। इसके अलावा संग्रहालय में पुरानी प्रतिमाएं, तस्वीरें और वॉल पेंटिंग्स भी देखी जा सकती हैं। यहां पर गुड़ियों और सिक्कों का संग्रह भी देखा जा सकता है। इनमें से कुछ सिक्के तो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के हैं।

स्वयंभूनाथ

विश्‍व धरोहर में शामिल स्वयंभू विश्‍व के सबसे भव्य बौद्ध स्थलों में से एक है। इसका संबंध काठमांडू घाटी के निर्माण से जोड़ा जाता है। काठमांडू से तीन किलोमीटर पश्चिम में घाटी से 77 मी. की ऊंचाई पर स्थित है स्वयंभू। इसके चारों ओर बनी आंखों के बार में माना जाता है कि ये गौतम बुद्ध की हैं जो चारों दिशाओं में देख रही हैं।

बौद्धनाथ

काठमांडु से 6 किलोमीटर पूर्व में स्थित बौद्धनाथ दुनिया के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। यह विश्‍व धरोहर में शामिल है। इस स्तूप के बार में माना जाता है कि जब इसका निर्माण किया जा रहा था, तब इलाके में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए पानी के मिलने के कारण ओस की बूंदों से इसका निर्माण किया गया। स्तूप 36 मीटर ऊंचा है और स्तूप कला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।